शिव-पार्वती |
हरतालिका तीज व्रत कथा:-
हरतालिका दो शब्दों से मिलकर बनता है- हरत और आलिका। हरत का मतलब होता है 'अपहरण' और आलिका का मतलब होता है 'सहेली'। कहा जाता है कि एक बार मां पार्वती की सहेली, पार्वती को जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं। क्योंकि माता पार्वती के पिता हिमवान, माता पार्वती की शादी भगवान विष्णु से कराना चाहते थे। परंतु ए रिश्ता माता पार्वती को पसंद नहीं था। इसलिए वह बहुत परेशान रहती थी, यह देख उनके सखी ने पूछा क्या होआ पार्वती?तुम क्यों इतनी उदास हो?तब माता पार्वती ने अपनी सखी से कहा कि वह भोलेनाथ को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लि है।अब वह ओर किसी को अपना पति नहीं मानेंगी।
तब उनकी सखी ने माता पार्वती को घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना करने के लिए छोड़ आई।भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती जी ने शिव का शिवलिंग बनकर उनकी विधिवत पूजन की।माता पार्वती के कठोर तप को देख भगवान शिव प्रसन्न होकर माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था और भगवान शिव बोले भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को जो स्त्री हमदोनों की पूजन विधिवत करेंगी उनके मनपसंद जीवनसाथी मिलेगा और उनकी मनोकामना पूर्ण होगी।
सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती है। इस व्रत को रखने से शिव पार्वती अखंड सौभाग्य का वरदान देते हैं। और वहीं दूसरी तरफ कुंवारी कन्या अपने मनचाहे वर को पाने के लिए एह व्रत करती है।
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