रविवार, 7 जून 2020

दशहरा 2020-विजयदशमी पर्व और मुहूर्त


दशहरा 2020-विजयदशमी पर्व और मुहूर्त
Dussehra in India 

दशहरा 2020-विजयदशमी पर्व और मुहूर्त:- इस दिन लोग शस्त्र-पूजा करते हैं और नया कार्य प्रारम्भ करते हैं (जैसे अक्षर लेखन का आरम्भ, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि)। इस साल यानी 2020 में दशहरा 25 अक्टूबर को आरंभ होगा।दशमी शुभ मुहूर्त 25 अक्टूबर सुबह 7:41 और समाप्त 26 अक्टूबर सुबह 8:59 मिनट पर। ऐसा विश्वास है कि दशहरा के दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है उसमें विजय मिलती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं रामलीला का आयोजन होता है रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है।। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा शक्ति पूजा के रूप में दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा का पर्व है शस्त्र पूजन की तिथि है ॥हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है भारतीय संस्कृत वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है॥ व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है।। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
दशहरा 2020-विजयदशमी पर्व और मुहूर्त


दशहरा इन इंडीया 
हत्व(IMPORTANCE) 
   प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे।। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोड़ने की प्रेरणा हमें देता है।। 
दशहरा या दसेरा शब्द 'दश'(दस) एवं 'अहन्‌‌' से बना है। दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में कई कल्पनाएं की गई हैं। कुछ लोगों का मत है कि यह कृषि का उत्सव है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है।  दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है भारत कृषि प्रधान देश है जब किसान अपने सुनहरी फसल उगाकर आनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। 
 विजय पर्व
    दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है। इस दृष्टि से दशहरे अर्थात विजय के लिए प्रस्थान का उत्सव का उत्सव आवश्यक भी है।
भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है, प्रत्येक व्यक्ति और समाज के रुधिर में वीरता का प्रादुर्भाव हो कारण से ही दशहरे का उत्सव मनाया जाता है. यदि कभी युद्ध अनिवार्य ही हो तब शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा ना कर उस पर हमला कर उसका पराभव करना ही कुशल राजनीति है।। भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है, भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था॥ मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था।। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे।।इस पर्व को भगवती के 'विजया' नाम पर भी 'विजयादशमी' कहते हैं।। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावन का वध कर अयोध्या पहुँचे थेे।। इसलिए भी इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है।। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक मुहूर्त होता है।। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं।
ऐसा माना गया है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय प्रस्थान करना चाहिए।। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग और भी अधिक शुभ माना गया है।। युद्ध करने का प्रसंग न होने पर भी इस काल में राजाओं (महत्त्वपूर्ण पदों पर पदासीन लोग) को सीमा का उल्लंघन करना चाहिए॥दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी।। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता।। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहँ नौकरी कर ली थी। जब गोरक्षा के लिए विराट पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी।।विजयादशमी के दिन भगवान रामचंद्रजी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था।। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिए होता है।
दशहरा 2020-विजयदशमी पर्व और मुहूर्त
Rawan 
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