Jagannath-Puri |
रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है
पौराणिक और ऐतहासिक मान्यताएं तथा कथाएं प्रचलित है। एक कहानी के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न अपने परिवार सहित नीलांचल सागर (वर्तमान रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है में उड़ीसा क्षेत्र) के पास रहते थे।
एक बार राजा समुद्र के पास टहल रहे थे समुद्र में उन्हें एक बहुत बड़ा लकड़ी तैरती हुई दिखाई देती है। राजा ने उस लकड़ी को देखा तो तुरंत ही समुद्र से निकालने का आदेश दिया।राजा के आदेश पर लकड़ी को निकाल दिया गया और उस लकड़ी की सुंदरता को राजा देखते ही रह गए। उनका मन किया कि इस लकड़ी से जगदीश जी की मूर्ति बनायी जाय। वह इसपर सोच विचार ही कर रहे थे कि तभी वहां एक बूढ़े बढ़ई के रुप में देवों के शिल्पी विश्वकर्मा प्रकट हो गये और बोले, हे राजन मैं जगदीश जी का मूर्ति बनाऊंगा पर मेरा एक शर्त है। अगर आप मान ले तो मैं राजी हूं, राजा बोले ठीक है परंतु वह शर्त आपका क्या है? बूढ़े बढ़ई के वेश में प्रकट हुए भगवान विश्वकर्मा जी ने वह शर्त कहा मैं जबतक कमरे में मूर्ति बनाऊंगा तबतक मैं कमरे का दरवाजा बंद रखूंगा और मेरी इजाजत के बिना दरवाजा कोई खोले नहीं और मेरे पास कोई आ ना सके। राजा ने उनकी इस शर्त को मान लिया।वह बूढ़ा बढ़ई मूर्ति निर्माण कार्य में वही लगे जहां आज श्री जगन्नाथ जी का मंदिर है।
बहुत दिन बीत गया अभी तक दरवाजा नहीं खोला था। राजा को चिंता होने लगी, उनको तो मालूम नही था कि वह बुड्ढा बढ़ई ही स्वंय विश्वकर्मा है। कई दिन बीत जाने के पश्चात महारानी को ऐसा लगा कि कही वह बूढ़ा बढ़ई अपने कमरे में कई दिनों तक भूखे रहने के कारण मर तो नही गया। अपनी इस शंका को महारानी ने राजा से भी बताया। राजा को भी अब ऐसे ही लगने लगा था कि वह बुड्ढा बढ़ई बहुत दिन भूखे रहने के कारण मर गया होगा तब राजा ने दरवाजा खोलने के लिए निश्चित किया और जब राजा ने कमरे का दरवाजा खुलवाया तो वह बूढ़ा बढ़ी आलोपित हो गए और कमरे में नहीं मिले, लेकिन उनके द्वारा लकड़ी की अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की मूर्तिया वहां मौजूद मिली। यह देख राजा रानी बहुत दुखी हो गए उन्हें लगा कि उनकी गलती की वजह से यह मूर्ति पूरी नहीं बन सकी ,लेकिन उसी समय वहां आकाशवाणी हुई कि हे राजन ‘व्यर्थ दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं मूर्तियों को पवित्र कर स्थापित करवा दो।' राजा ने उनके आदेश पर अर्ध निर्मित मूर्ति को मंदिर में स्थापित करवा दिया और पूजा पाठ आरंभ की। आज भी वही अर्धनिर्मित मूर्तियां जगन्नाथपुरी मंदिर में विराजमान हैं। जिनकी सभी भक्त इतनी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं और यही मूर्तियां रथ यात्रा में भी शामिल होती हैं।जगन्नाथ रथ यात्रा आरंभ होने की शुरुआत में पुराने राजाओं के वशंज पारंपरिक ढंग से सोने के हत्थे वाले झाड़ू से भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने झाड़ु लगाते हैं और इसके बाद मंत्रोच्चार के साथ रथयात्रा शुरु होती है।
गणेश चतुर्थी की कहानीी:-http://rksstory.blogspot.com/2020/06/ganesh-chaturthi.html
फादर्स डे पर कहानी:-
http://rksstory.blogspot.com/2020/06/happy-fathers-day.html
रथ यात्रा के शुरु होने के साथ ही कई सारे पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाये जाते हैं, इसकी ध्वनि के बीच सैकड़ो लोग मोटे-मोटे रस्सों से रथ को खींचते है। इसमें सबसे आगे बलभद्र (बलराम) जी का रथ होता है और इसके थोड़ी देर बाद सुभद्रा जी का रथ चलना शुरु होता है॥सबसे अंत में लोग जगन्नाथ जी के रथ को बड़े ही श्रद्धापूर्वक खींचते है॥रथ यात्रा को लेकर मान्यता है कि इस दिन रथ को खींचने में सहयोग से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।इसी कारण इस दिन भक्त भगवान बलभद्र, सुभद्रा जी और भगवान जगन्नाथ जी का रथ खींचने के लिए ललायित रहते हैं।। जगन्नाथ जी की यह रथ यात्रा गुंदेचा मंदिर पहुंचकर पूरी होती है।
इस स्थान को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यदि सूर्यास्त तक कोई रथ गुंदेचा मंदिर नहीं पहुंच पाता है तो वह अगले दिन यात्रा पूरी करता है। इस जगह पर भगवान एक सप्ताह तक प्रवास करते हैं और यहीं उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। आषाढ़ शुक्ल दशमी को भगवान जगन्नाथ जी की वापसी रथ यात्रा शुरु होती है। इस रथ यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।
शाम से पूर्व ही तानो रथ जगन्नाथ मंदिर तक पहुंच जाते हैं। जहां एक दिन तक प्रतिमाएं भक्तों के दर्शन के लिए रथ में ही रखी जाती है। अगले दिन मंत्रोच्चारण के साथ देव प्रतिमाओं को पुनः मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है और इसी के साथ रथ यात्रा का यह पूर्ण कार्यक्रम समाप्त हो जाता है। इस पर्व के दौरान देश भर के कई शहरों में भी मानाया जाता है।
इस स्थान को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यदि सूर्यास्त तक कोई रथ गुंदेचा मंदिर नहीं पहुंच पाता है तो वह अगले दिन यात्रा पूरी करता है। इस जगह पर भगवान एक सप्ताह तक प्रवास करते हैं और यहीं उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। आषाढ़ शुक्ल दशमी को भगवान जगन्नाथ जी की वापसी रथ यात्रा शुरु होती है। इस रथ यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।
शाम से पूर्व ही तानो रथ जगन्नाथ मंदिर तक पहुंच जाते हैं। जहां एक दिन तक प्रतिमाएं भक्तों के दर्शन के लिए रथ में ही रखी जाती है। अगले दिन मंत्रोच्चारण के साथ देव प्रतिमाओं को पुनः मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है और इसी के साथ रथ यात्रा का यह पूर्ण कार्यक्रम समाप्त हो जाता है। इस पर्व के दौरान देश भर के कई शहरों में भी मानाया जाता है।
फादर्स डे पर कहानी:-
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